सामान्य ज्ञान: जानिए कहां है तेली का मंदिर , इसकी क्या है विशेषता

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सामान्य ज्ञान: जानिए कहां है तेली का मंदिर , इसकी क्या है विशेषता



सामान्य ज्ञान: जानिए कहां है तेली का मंदिर , इसकी क्या है विशेषता



 हिंदुस्तान के तमाम किलो की मणिमाला में प्रमुख मोती ग्वालियर के किले को भारत का जिब्राल्टर संज्ञा से निरूपित किया जाता है। छठी शताब्दी में मूलतः राजा सूरज सेन द्वारा निर्मित है जिसे प्रतिहारी कक्ष पघातों शाशकों व तोमर शासकों के काल में हुए सांस्कृतिक विस्तार ने नई पहचान दी है। किले पर भारतीय स्थापत्य की विलक्षण भव्यता व विविधता पूर्ण सरंचनाएं  हैं।
 समूचे उत्तर भारत में द्रविण आर्य स्थापत्य शैली का समन्वय ग्वालियर किले पर तेली मंदिर के रूप में दृस्तब्य होता है । लगभग 100 फुट की ऊंचाई लिए किले का यह सर्वाधिक ऊंचाई वाला प्राचीन मंदिर है अधिकांश इतिहासकार है इसका निर्माता कन्नौज के राजा यशोवर्मन ( 750 ईसवी) को मानते हैं । उत्तर भारतीय अलंकरण से युक्त इस मंदिर का स्थापत्य दक्षिण द्रविण शैली का है। विशाल जगती पर स्थापित मंदिर का शिखर ऊपर की ओर सकरा एवं बेलन की तरह गोलाई  लिए हुए हैं। गर्भ गृह में छोटा मंडप जिसके भाग्य में 113 लघु देव प्रकोष्ठ है। प्रवेश द्वार पर यमुना व गंगा की प्रतिमाएं कक्षप पर विराजमान है। मध्यकालीन आक्रमणों  से ध्वस्त मंदिर को ब्रिटिश काल में मेजर कीथ के निर्देशन में संरक्षण प्रदान किया गया ।

राष्ट्रकूट कालीन कला  से युक्त तेली का मंदिर (तैलंग का अपभ्रंश) पर्यटकों को तो लुभाता ही है साथ ही भारतीय गौरवशाली अतीत और कला वैभव का द्योतक है उत्तर दक्षिण की समन्वय कलाकार संगम के रूप में यह कला प्रेमियों को विस्मित भी करती है।

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