किसान आंदोलन को हल्के में न ले केंद्र सरकार,शिवराज सिंह केंद्र की हाँ में हाँ न मिलाकरजमीनी हकीकत प्रधानमंत्री को बताएं -अजय सिंह

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किसान आंदोलन को हल्के में न ले केंद्र सरकार,शिवराज सिंह केंद्र की हाँ में हाँ न मिलाकरजमीनी हकीकत प्रधानमंत्री को बताएं -अजय सिंह




किसान आंदोलन को हल्के में न ले केंद्र सरकार,शिवराज सिंह केंद्र की हाँ में हाँ न मिलाकर जमीनी हकीकत प्रधानमंत्री को बताएं -अजय सिंह 

भोपाल | 
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह ने कहा है कि केंद्र सरकार देश के किसानों द्वारा तीन काले कृषि क़ानूनों के खिलाफ किए जा रहे आंदोलन को हल्के में न ले| इसे गंभीरता से लेते हुये इन क़ानूनों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए वरना इसके भयानक दुष्परिणाम होंगे| उन्होने शिवराजसिंह से भी आग्रह किया है कि वे केंद्र की हाँ में हाँ न मिलाकर जमीनी हकीकत प्रधानमंत्रीजी  को बताएं क्योंकि यह किसानों के जीवन मरण का प्रश्न है| 
अजयसिंह ने कहा कि अव्वल तो इन क़ानूनों का मसौदा तैयार करते समय किसान संगठनों के एक भी प्रतिनिधि  से चर्चा नहीं की गई | आश्चर्य है कि जिनके लिए कृषि कानून बनाया जा रहा था, उन्हें ही इसके बारे में नहीं मालूम था| जिनका कृषि से कोई सीधा लेना देना नहीं है ऐसी बड़ी बड़ी कंपनियों के दबाव में उनके फायदे के लिए यह काले कृषि कानून लाये गए हैं| नए कानून से कार्पोरेट्स तो कृषि उपजों से लाभ प्राप्त करने की कोशिश करेंगे और किसान वहीं का वहीं खड़ा रहेगा|
सिंह ने कहा कि किसानों की यह आशंका भी सही है कि बड़े लोग जमाखोरी करेंगे जिससे छोटे छोटे किसानों को नुकसान होगा| आम तौर पर बाजार में अनाज की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर नहीं होती हैं| कानून में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई गारंटी नहीं है| इससे किसानों का नुकसान ही नुकसान है| जिन आढ़तियों और साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए कांग्रेस सरकारों ने कृषि मंडियों की व्यवस्था बनाई उसे भाजपा सरकार ने ध्वस्त कर दिया है| इसे फिर से व्यापारियों के हाथ में सौंपने का षड्यंत्र किया गया है| 
अजयसिंह ने कहा कि नए कानून में कांट्रेक्ट फ़ार्मिंग की जो व्यवस्था की गई है उसके सभी प्रावधान कार्पोरेट्स के पक्ष में हैं| एक अपढ़ या साधारण पढ़ा लिखा किसान उसे नहीं समझ पाएगा| विवाद होने पर उसे न्यायिक कोर्ट में न ले जाकर साधारण एस0डी0एम0 कोर्ट में ले जाने कि व्यवस्था है| इससे किसानों को राहत मिलने की उम्मीद नहीं के बराबर रहेगी| प्रथम दृष्ट्या कृषि से जुड़े कानून किसान विरोधी हैं इन्हें तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए |

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