भील जनजातीय नृत्य ‘भगोरिया, पाली एवं डोहा’ की शानदारप्रस्तुति

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भील जनजातीय नृत्य ‘भगोरिया, पाली एवं डोहा’ की शानदारप्रस्तुति



भील जनजातीय नृत्य ‘भगोरिया, पाली एवं डोहा’ की शानदार प्रस्तुति 


भोपाल।
मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आज आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा श्री संजय भाटे एवं साथी, सागर द्वारा ‘बुन्देली गायन’ एवं श्री प्रताप सिसोदिया और साथी, धार द्वारा भील जनजातीय नृत्य ‘भगोरिया, पाली एवं डोहा’ की प्रस्तुति हुई | 

            प्रस्तुति की शुरुआत श्री संजय भाटे और साथियों द्वार बुन्देली गायन से हुई, जिसमें- महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर गायें जाने वाले गीत ‘गौरा ब्याहन भोला की बरात है चली’, हरदौल चरित्र – कहें हरदौल भौजी तुमने मोरो पूरण जनम बिगारो’, लोकगीत- ‘बओ ने शक के बीजा, बलम ऐसे हैं नैया जीजा’, लेद- ‘बोली गोली सी ना दागो धना’, चेतावनी- ‘सुनलो री गुइयां, सबरनों ने सासरे जाने’ एवं तमूरा भजन – रचातो ने बनो संसार, भारी भूल भई  विरमा से’, ‘मरम न जाने कोय राम तोरे’ आदि भजन प्रतुत किये|  
             प्रस्तुति में मंच पर- ढोलक पर -संजय भाटे स्वयं, तबला वादक- प्रशांत श्रीवास्तव, बेन्जो वादन-संतोष, गायन- मणीदेव सिंह ठाकुर, तमूरा भजन गायक- नारायण पटेल, सह गायन - अमान पटेल, संजय आलिया, आशीष लाला, शैफाली पवार एवं कोरस में - कृष्णा बाई, हरी बाई, विमला बाई और हीरा बाई ने संगत दी।        

श्री संजय भाटे लगभग पैंतीस वर्षों से ढोलक वादन कर रहे हैं, इन्होंने ढोलक एवं तबले से एम.ए. किया है, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मंचो पर लोक विधाओं में ढोलक वादन और लोकगीत तमूरा भजन जैसी कई विधाओं में अपने दल के साथ भारत के अनेक राज्यों में अपनी प्रस्तुतियाँ दी हैं, आपको ढोलक वादन में अम्बेडकर राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया है| श्री भाटे को ढोलक वादन के लिए कई पुरस्कार और ख्यातियां प्राप्त हैं, आप लोक की सभी विधाओं में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते चले आ रहे हैं । 

            दूसरी प्रस्तुति श्री प्रताप सिसोदिया एवं साथियों द्वारा भील जनजातीय नृत्य ‘भगोरिया, पाली एवं डोहा’ को हुई| भील जनजातीय नृत्य ‘भगोरिया’ फागुन मास में होली के सात दिन पूर्व से आयोजित होने वाले हाटों में पूरे उत्साह और उमंग के साथ भील युवक एवं युवतियों द्वारा पारंपरिक रंग-बिरंगे वस्त्र, आभूषण के साथ किया जाता है, जिसे भगोरिया नृत्य कहते हैं| फसल कटाई के पश्चात् वर्षभर के भरण-पोषण के लिए समुदाय इन हाटों में आता है| भगोरिया नृत्य में विविध पदचाप समूहन पाली, चक्रीपाली तथा पिरामिड नृत्य मुद्राएँ आकर्षण का केंद्र होती हैं|  

            डोहा- मान्यता से सम्बन्धित उत्सव है। मनोकामना पूर्ण होने पर दीपावली के समय पाँच दिन तक घर-घर जाकर डोहा खेला जाता है। एक मिट्टी की छोटी गागर में चारों ओर छोटे-छोटे छिद्र किये जाते हैं उसमें बीचोंबीच प्रज्जवलित दीपक रखते हैं। गाँव के युवक-युवतियाँ रात्रि में प्रत्येक घर जाकर ढोल, थाली और पावली की धुन पर नृत्य गान गाते हैं। वहीं पाली नृत्य- विवाह-शादी एवं मांगलिक अवसरों पर भीली युवक-युवतियों द्वारा विभिन्न हस्त एवं पद मुद्राओं के साथ किया जाने वाला नृत्य है।

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