मध्यप्रदेश में ट्रांसफर- पोस्टिंग के रैकेट पर कसे कानूनी शिकंजा-सुधांशु द्विवेदी,अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार एवं सम सामयिक मामलों के विश्लेषक

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मध्यप्रदेश में ट्रांसफर- पोस्टिंग के रैकेट पर कसे कानूनी शिकंजा-सुधांशु द्विवेदी,अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार एवं सम सामयिक मामलों के विश्लेषक



मध्यप्रदेश में ट्रांसफर- पोस्टिंग के रैकेट पर कसे कानूनी शिकंजा-सुधांशु द्विवेदी,अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार एवं सम सामयिक मामलों के विश्लेषक

भोपाल।
मध्यप्रदेश में इन दिनों सरकारी अधिकारियों- कर्मचारियों के ट्रांसफर- पोस्टिंग से जुड़े मामलों की खूब चर्चा हो रही है। सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग एक सतत एवं स्वाभाविक प्रशासनिक प्रक्रिया है, जिसे आवश्यकतावश या परिस्थितिजन्य कारणों के चलते अंजाम दिया जाता है। लेकिन यही प्रक्रिया जब अनैतिक तरीके से धनार्जन एवं गोरखधंधे का आधार बन जाए तो सुशासन की अवधारणा पर प्रश्न चिन्ह लगना और समूचे रैकेट को ध्वस्त कर उस पर कानूनी शिकंजा कसते हुए जेल की सलाखों के पीछे भेजे जाने की आवश्यकता बढऩा स्वाभाविक है। विगत दिनों ट्रांसफर पोस्टिंग से जुड़ा एक बड़ा खुलासा होने तथा उसमें प्रदेश के मंत्री प्रभुराम चौधरी और पूर्व मंत्री रामपाल सिंह से जुड़े लोगों के शामिल होने का खुलासा होने के साथ ही क्राइम ब्रांच द्वारा एफआईआर दर्ज किया जाना एक बड़ा टर्निग प्वाइंट है। इसके अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ट्रांसफर पोस्टिंग के लिये भेजी जाने वाली अनुशंसाओं में फर्जी लेटरहेड का उपयोग या असली लेटरहेड का दुरुपयोग होने के खुलासे से यह बात तो अवश्य साबित होती है कि मध्यप्रदेश के सीएम हाउस में कुछ ऐसे लाल बुझक्कड़ और संदिग्ध मानसिकता वाले लोग अवश्य तैनात हैं, जो इस काले खेल में न सिर्फ शामिल हैं अपितु उनके कारनामों के कारण सुशासन की महत्वपूर्ण अवधारणा भी तबाह हो रही है। क्यों कि ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों- कर्मचारियों को ट्रांसफर पोस्टिंग के नाम पर प्रताडि़त और परेशान किया जाएगा तो सिस्टम की थू- थू होने के साथ ही मुख्यमंत्री की भूमिका पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि इस पूरे मामले में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह एवं प्रदेश के कुछ मंत्रियों, प्रदेश स्तरीय अधिकारियों, संदिग्ध कारनामों वाले जन प्रतिनिधियों की भूमिका की भी जांच करके आवश्यक होने पर विधिसम्मत कड़ी कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। क्यों कि सिस्टम का मुखिया अगर इतना लापरवाह है कि इस गोरखधंधे के गुनाह में शामिल लोग उसके नाम पर फर्जी अनुशंसाएं, फर्जी लेटरहेड का उपयोग या असली लेटरहेड का दुरुपयोग कर रहे हैं तो सिस्टम के मुखिया की कार्यक्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगने के साथ ही उसका पूरी तरह बेनकाब होना जरूरी है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस पार्टी का बौद्धिक चेेहरा माने जाते हैं। कमलनाथ इस तरह की ट्रांसफर पोस्टिंग पर पहले ही चिंता जताते हुए कड़ा विरोध दर्ज करा चुके हैं। ऐसे में प्रदेश के तेजतर्राट एवं तत्पर डीजीपी विवेक जौहरी को चाहिये कि वह क्राइम ब्रांच की इस जांच का दायरा बढ़ाते हुए उसे और अधिक प्रभावी बनाएं। वह सत्ताधारियों के किसी भी दबाव की परवाह न करते हुए सत्य को उजागर करने/ कराने का ऐसा करिश्मा करें कि ट्रांसफर- पोस्टिंग के रैकेट में शामिल गुनाहगारों की रूह कांप जाए। उत्तरप्रदेश के डीजीपी मुकुल गोयल प्रदेश में हर तरह क्राइम रोकने के लिये जिस तरह से युद्धस्तरीय प्रयास कर रहे हैं उसी तरह मध्यप्रदेश में इस एकोनामिकल क्राइम को रोकने के लिये विवेक जौहरी को पूरी ताकत का इस्तेमाल करना चाहिये। ट्रांसफर- पोस्टिंग के रैकेट मामले में पूरा न्याय और पूरा सच सामने आना जरूरी है।

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