Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष में भूलकर भी ना खरीदें ये चीजें, नहीं हो सकती है कष्ट दायक,जानिए क्या है पितृ दोष
Shopping in Pitru Paksha Auspicious or Inauspicious: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व दिया गया है. पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है.
इस पखवाड़े को पितरों का स्मरण और उन्हें श्रद्धांजलि देने का समय कहा गया है. इन 15 दिनों के दौरान लोग अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं. लेकिन, कई बार अनजाने में की गई गलतियां पुण्य को व्यर्थ कर देती हैं और पाप का कारण बन सकती हैं. कहते हैं कि पितृ पक्ष में कुछ चीजों को खरीदने से बचना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर इन चीजों को पितृ पक्ष के दौरान खरीदा जाता है, तो घर-परिवार पर पितृ दोष का संकट मंडराने लगता है. आइए जानते हैं कि पितृ पक्ष में किन चीजों की खरीददारी नहीं करनी चाहिए.
क्या होता है पितृदोष?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब पितरों की आत्माएं तृप्त नहीं होतीं, तो वे अपने वंशजों को कष्ट देती हैं. इसे ही पितृदोष कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी पूर्वज अपनी संतान और परिवार पर दृष्टि रखते हैं. पितृ पक्ष के दिनों में वे धरती पर आकर अपने प्रियजनों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं. इसीलिए इस काल में कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी माना गया है.
पितृ पक्ष में भूल से भी ना खरीदें ये चीजें
शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष की अवधि में जूते, चप्पल और नए वस्त्र खरीदने से परहेज करना चाहिए. इसके अलावा इस दौरान सोना-चांदी खरीदना अशुभ माना गया है. वहीं, इस दौरान विवाह, सगाई जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों को करने से बचना चाहिए. पितृ पक्ष में तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन, अंडा, मांस और मछली का सेवन निषेध है. इसलिए पितृ पक्ष में हर किसी को इस नियम का पालन करना चाहिए. जबकि, शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में धार्मिक कार्यों में अधिक समये देना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. साथ ही, इस अवधि में किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए और ना ही किसी को अपशब्द कहने चाहिए.
पिण्ड दान करना होता है लाभकारी
वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है. पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है. इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है.
श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए. पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है.
तीन ऋण में है मनुष्य जीवन
ज्योतिषाचार्या एवं टैरो कार्ड रीडर नीतिका शर्मा ने बताया कि पितृ पक्ष में पितरों की मरण-तिथि को ही उनका श्राद्ध किया जाता है. सर्वपितृ अमावस्या को कुल के उन लोगों का श्राद्ध किया जाता हैं जिन्हें हम नहीं जानते हैं. इसके अलावा, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन में पितरों को याद किया जाता है.
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन में तीन ऋण मुख्य है. ये हैं 'देव ऋण', 'ऋषि ऋण', और 'पितृ ऋण'. इनमें से देव ऋण यज्ञादि द्वारा, ऋषि ऋण स्वाध्याय और पितृ ऋण को श्राद्ध द्वारा उतारा जाता है. इस ऋण का उतारा जाना जरूरी होता है क्योंकि जिन माता-पिता ने हमें जन्म दिया, हमारी उम्र, आरोग्य और सुख-समृद्धि के लिए कार्य और तकलीफें उठाईं उनके ऋण से मुक्त हुए बगैर हमारा जन्म निरर्थक है.
पितृ पक्ष में जब सूर्य कन्या राशि में होता है, तब पितृ लोक से पृथ्वी पर पितर इस आशा के साथ आते हैं कि उनके पुत्र-पौत्र उन्हें पिंडदान कर संतुष्ट करेंगे. ऐसा न होने पर अतृप्त इच्छा लेकर लौटे पितर दुष्ट या बुरी शक्तियों के अधीन हो जाते हैं, जिसके चलते बुरी शक्तियों द्वारा पितरों के माध्यम से परिवारजनों को कष्ट देने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं.
इसके चलते घर में कलह, झगड़े, पैसे का न रुकना, नौकरी का अभाव, गंभीर बीमारी, हालात अनुकूल होने के बाद भी शादी का न होना या टूटना, बच्चे न होना, या विकलांग बच्चों का होना आदि परेशानियां होने लगती हैं. लेकिन पितृपक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध करने से उनकी अतृप्त इच्छाओं के पूर्ण होने से, उनकी मुक्ति के साथ ही परिवारजनों को भी उनकी तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है.
पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां
7 सितंबर - पूर्णिमा श्राद्ध
8 सितंबर - प्रतिपदा श्राद्ध ,
9 सितंबर - द्वितीया श्राद्ध
10 सितंबर - तृतीया श्राद्ध - चतुर्थी श्राद्ध
11 सितंबर - पंचमी श्राद्ध
12 सितंबर - षष्ठी श्राद्ध
13 सितंबर - सप्तमी श्राद्ध
14 सितंबर - अष्टमी श्राद्ध
15 सितंबर - नवमी श्राद्ध
16 सितंबर - दशमी श्राद्ध
17 सितंबर - एकादशी श्राद्ध
18 सितंबर - द्वादशी श्राद्ध
19 सितंबर - त्रयोदशी श्राद्ध
20 सितंबर - चतुर्दशी श्राद्ध
21 सितंबर - सर्व पितृ अमावस्या
22 सितंबर - मातामह नान श्राद्ध
वहीं, इस दौरान (Pitru Paksha 2025) कुछ जीवों का भी घर आना बहुत ही शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं -
पितृ पक्ष में इन जीवों का घर आना है शुभ (Auspicious Signs In Pitru Paksha)
कौवे - पितृ पक्ष में कौवे का घर पर आना सबसे शुभ माना जाता है। यह माना जाता है कि कौवे पितरों के प्रतिनिधि होते हैं। अगर आप पितरों के लिए निकाला गया भोजन कौवे को खिलाते हैं, तो यह सीधे पितरों तक पहुंचता है। इसलिए पितृ पक्ष में कौवे को भोजन खिलाना बहुत ही शुभ माना गया है।
गाय - गाय को हिंदू धर्म में माता का दर्जा दिया गया है। पितृ पक्ष में गाय का घर पर आना भी बहुत ही शुभ माना जाता है। अगर पितृ पक्ष के दौरान कोई गाय आपके घर के दरवाजे पर आती है, तो यह माना जाता है कि आपके पितर आपसे खुश हैं।
कुत्ता - पितृ पक्ष के दौरान कुत्ते को भी भोजन खिलाया जाता है। अगर कोई कुत्ता आपके घर के दरवाजे पर आता है, तो उसे भगाएं नहीं, बल्कि उसे खाना खिलाएं। ऐसा माना जाता है कि कुत्ते यमराज के दूत होते हैं और इन्हें खाना खिलाने से यमराज खुश होते हैं।
चींटियां - पितृ पक्ष के दौरान अगर आपके घर में चींटियां अचानक से दिखने लगें तो इसे शुभ संकेत माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चींटियां पितरों को शांति प्रदान करने का माध्यम हैं। ऐसे में इन्हें दाना जरूर डालें।
पक्षी - अगर पितृ पक्ष के दौरान कोई पक्षी आपके घर में आता है, तो इसे भी शुभ माना जाता है। पक्षियों को दाना और पानी जरूर दें। ऐसा कहा जाता है कि पक्षी पितरों की कृपा लेकर आते हैं।
इन बातों का भी रखें ध्यान
पितृ पक्ष में सभी जीवों का सम्मान करें और उन्हें भोजन कराएं। ऐसा माना जाता है कि जीवों को भोजन कराने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही कुंडली से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है। वहीं, इस दौरान रोजाना पितरों का तर्पण जरूर करना चाहिए। इससे पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

0 टिप्पणियाँ