सामाजिक क्रांति के पुरोधा थे माधवराव सप्रे

Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

सामाजिक क्रांति के पुरोधा थे माधवराव सप्रे



सामाजिक क्रांति के पुरोधा थे माधवराव सप्रे  


भोपाल । पं. माधवराव सप्रे ने जो जीवन-मूल्य स्‍थापित किए, वह वर्तमान पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक हैं। हम सभी को उनके जीवन से यह सीख लेनी चाहिए कि स्वावलंबन के बिना आजादी का कोई मोल नहीं है। यह विचार केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने पं. माधवराव सप्रे की 150वीं जयंती के अवसर पर आयोजित वेबिनार में व्यक्त किए। उन्होंने 'भारत का वैचारिक पुनर्जागरण और माधवराव सप्रे' विषय पर अपने उद्बोधन में कहा कि पं. माधवराव सप्रे की जन्मस्थली पथरिया में उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी। हमें उनके लेखन से प्रेरणा लेनी चाहिए। हिंदी पत्रकारिता और हिंदी भाषा के विकास में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। यह कार्यक्रम इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और भारतीय जनसंचार संस्थान (आइआइएमसी) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। इस अवसर पर वैचारिक पत्रिका 'मीडिया विमर्श' का माधवराव सप्रे पर केंद्रित विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए इंदिरा गांधी कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि माधवराव सप्रे देश के पहले ऐसे पत्रकार थे, जिन्हें राजद्रोह के आरोप में वर्ष 1908 में जेल हुई। उन्होंने साहित्य की हर धारा में लिखा। उनके लेख आज भी युवाओं को प्रेरणा देते हैं। उन्होंने कहा कि दो वर्ष तक पं. माधवराव सप्रे पुण्य स्मरण के कार्यक्रम चलेंगे।
वहीं आइआइएमसी के महानिदेशक "ङो. संजय द्विवेदी ने कहा कि माधवराव सप्रे की प्रेरणा और भारतबोध से हमारा देश सशक्त राष्ट्र के रूप में उभरेगा। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने ने कहा कि सप्रे हिंदी नवजागरण काल के अग्रदूत थे। पत्रकारिता, साहित्य और भाषा के क्षेत्र में उनके कार्यों का समग्र आकलन अभी तक नहीं हो पाया है। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अचल पंड्या ने किया। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने कहा कि समाज सुधारक के रूप में माधवराव सप्रे का महत्वपूर्ण योगदान है। अपने लेखन से उन्होंने सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया। उन्होंने जन-जागरूकता के लिए कहानियां लिखी और समाचार पत्र प्रकाशित किए। दलित समाज और महिलाओं के लिए किए गए उनके कार्य अविस्मरणीय हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जिले में ग्रामीण पुस्तकालय बनाया जाए, जिससे हमारी भावी पीढ़ी को पढ़ने का मौका मिले। वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि माधवराव सप्रे ने पत्रकारिता के माध्यम से एक नई व्यवस्था बनाने की कोशिश की थी। यह सीख लेने वाली बात है कि किस तरह उन्होंने एक ऐसे समाज की रचना करने की कोशिश की, जहां आने वाली पीढ़ी सुख और शांति के साथ रह सके।
वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए रामबहादुर राय ने कहा कि राष्ट्रीय पुनर्जागरण एक तरह से नए ज्ञान के उदय की प्रक्रिया भी है। माधवराव सप्रे ने यह काम अनुवाद के माध्यम से किया और समर्थ गुरु रामदास की प्रसिद्ध पुस्तक 'दासबोध" का अनुवाद किया। उन्होंने कहा कि माधवराव सप्रे का पूरा जीवन संघर्ष और साधना की मिसाल है। उनके निबंधों को पढ़ने पर मालूम होता है कि उनके ज्ञान का दायरा कितना व्यापक था। वहीं माधवराव सप्रे के पौत्र डॉ. अशोक सप्रे ने कहा कि दादाजी ने मराठीभाषी होते हुए भी हिंदी भाषा के विकास के लिए कार्य किया। उनका मानना था कि जब देश स्वतंत्र होगा, तो भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी ही हो सकती है। इससे पता चलता है कि वे कितने दूरदर्शी थे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ