Chapter: 3 प्राथमिक शिक्षक (MPTET), (CTET) के लिए, विषय- बाल विकास शिक्षा शास्त्र

Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

Chapter: 3 प्राथमिक शिक्षक (MPTET), (CTET) के लिए, विषय- बाल विकास शिक्षा शास्त्र





Chapter: 3  प्राथमिक शिक्षक (MPTET), और(CTET) के लिए, विषय- बाल विकास शिक्षा शास्त्र


              बाल विकास की अवधारणा:-

 सामान्य अर्थ:-

●बालकों का मानसिक व शारीरिक विकास।
●विकास का संबंध गुणात्मक( कार्यकुशलता, ज्ञान तर्क,नवीन ,विचार धारा) एवं परिमाणात्मक लंबाई में वृद्धि भार में वृद्धि तथा अन्य दोनों से है।

●शिक्षकों के एक निश्चित आयु के सामान्य बालकों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक परिपक्वता का ज्ञान होना आवश्यक है ।जिसमें से उनकी क्रियाओं को नियमित करके अपेक्षित दिशा प्रदान कर सके।
रिक के अनुसार, " विकास एक एवं बंद कर से चलने वाली प्रक्रिया है।"

            बाल विकास के सिद्धांत:-

●निरंतरता का सिद्धांत।
● व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत ।
●विकास क्रम में एकरूपता।
 ●वृद्धि एवं विकास की गति कि दर एक सी नहीं रहती।
●विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है।
●परस्पर संबंध का सिद्धांत।
● एकीकरण का सिद्धांत।
● विकास की दिशा का सिद्धांत।
 ●विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है।

              निरंतरता का सिद्धांत:-

इसके अनुसार विकास एक रुकने वाली प्रक्रिया है मां के गर्भ से ही यह प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है ।और मृत्यु पर्यंत चलती रहती है। एक छोटे-से नगण्य आकर से अपना जीवन प्रारंभ करके हम सब के व्यक्तित्व के सभी  पक्षों शारीरिक ,मानसिक ,सामाजिक आदि का संपूर्ण विकास होता है।

             वैयक्तिक विभिन्नता का सिद्धांत :-

इस सिद्धांत के अनुसार बालकों का विकास और वृद्धि उनकी व्यक्तितकता के अनुरूप होती है। वे अपनी स्वाभाविक गति से ही वृद्धि और विकास के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते रहते हैं , और इसी कारण उनमें पर्याप्त  विभिन्नताएं देखने को मिलती है।
        गैसल के अनुसार,
 "जो व्यक्ति समान नहीं होती परंतु सभी बालकों के विकास का क्रम समान होता है।"

                विकास क्रम की एकरूपता:-

  ● यह सिद्धांत बताता है कि विकास की गति एक जैसी ना होने तथा पर्याप्त वैयक्तिक अंतर पाए जाने पर ही विकास क्रम में कुछ एकरूपता के दर्शन होते हैं।

 ● इस क्रम में एक ही जाति विशेष के सभी सदस्यों में कुछ एक जैसी विशेषताएं देखने को मिलती है।

     विकास उदाहरण के लिए, मनुष्य जाति के सभी बालकों की वृद्धि सिर की ओर से प्रारंभ होता है।

             परस्पर संबंध का सिद्धांत:-

●विकास के सभी आयाम जैसे शारीरिक ,मानसिक, सामाजिक ,संवेगात्मक आदि एक दूसरे से परस्पर संबंधित है।

    ●इनमें से किसी भी एक आयाम में होने वाला विकास अन्य सभी आयामों में होने वाले विकास को पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता रखता है।

                एकीकरण का सिद्धांत:-

● विकास की प्रक्रिया एकिकरण के सिद्धांत का पालन करती है।
 ●    इसके अनुसार बालक पहले संपूर्ण अंग को और फिर अंग के भागों को चलाना  सीखता है, इसके बाद वह उन भागों में एकीकरण करना सीखता है।

             विकास की दिशा का सिद्धांत:-

 इस सिद्धांत के अनुसार विकास की प्रक्रिया पूर्व निश्चित दिशा में आगे बढ़ती है।
    इसके 2 भाग होते हैं:-

  1. समीप दुराभिमुख दिशा:-

     इस सिद्धांत के अंतर्गत विकास शरीर के केंद्र से शुरू होकर बाहर की ओर होता है, इसके अंतर्गत सबसे पहले रीढ़ की हड्डी का विकास पश्चात अन्य अंगों का विकास होता है।

    उदाहरणार्थ, रूपा सबसे पहले अपने शरीर पर नियंत्रण करना सीखती है, फिर अपने हाथ की अंगुलियां पर फिर बाहों पर नियंत्रण कर लेती है।

 विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है:- 

    एक बालक की अपनी वृद्धि और विकास की गति को ध्यान में रखकर उसके आगे बढ़ने की दिशा और स्वरूप के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है।


नोट:- आपको बालविकास का चैप्टर कैसा लगा , हमें कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

           रवि शुक्ला
           📲9713489063

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ