खुद की जान बचाने के चक्कर में मरीजों की जान से खिलवाड़ ,कोरोना के इलाज में गंभीर नहीं सीएस एवं प्रभारी सीएमएचओ

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खुद की जान बचाने के चक्कर में मरीजों की जान से खिलवाड़ ,कोरोना के इलाज में गंभीर नहीं सीएस एवं प्रभारी सीएमएचओ



खुद की जान बचाने के चक्कर में मरीजों की जान से खिलवाड़

कोरोना के इलाज में गंभीर नहीं सीएस एवं प्रभारी सीएमएचओ



चिकित्सकीय लापरवाही की बदौलत विगत दिवस सीधी जिले के युवा व्यवसाई निशांत प्रकाश श्रीवास्तव आइसोलेशन वार्ड में बिस्तर के अभाव में फर्श पर लेटकर किस तरह एक-एक सांस के लिए ऑक्सीजन को लेकर तड़प-तड़प कर जिंदगी की जंग लड़ रहे थे देखिए वीडियो....




*जिला अस्पताल एवं कोविड सेंटर में बेपटरी हुई स्वास्थ्य सेवाएं

*कोरोना के इलाज में गंभीर नहीं सीएस एवं प्रभारी सीएमएचओ


(✍️आर बी सिंह राज )सीधी।

वैश्विक महामारी कोरोना के उपचार व्यवस्थाओं को लेकर जिला अस्पताल के सिविल सर्जन एवं प्रभारी सीएमएचओ कतई गंभीर नहीं हैं। उनके द्वारा जिला अस्पताल के आउटडोर, वार्डों एवं कोविड सेंटर का निरीक्षण कर उपचार व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की जरूरत नहीं समझी जा रही है। इसी लापरवाही के चलते मंगलवार की रात शहर के युवा व्यवसायी निशान्त प्रकाश श्रीवास्तव 40 वर्ष की सही उपचार व्यवस्था न मिलने से घंटों तड़प-तड़प कर मौत हो गयी थी। 
कोविड-19 सेंटर सीधी में भर्ती कोरोना मरीज की हालत दोपहर बाद से ही बिगडऩा शुरू हो गयी थी। ड्यूटी में मौजूद स्टाफ नर्स की सूचना पर कोविड सेंटर प्रभारी डॉ. अविनाश जान काफी समय बाद पहुंचे और जान बचानें के लिए मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट में रखने के बजाय सीधे मेडिकल कॉलेज रीवा के लिए रेफर कर दिया गया। विडंबना यह थी कि जिला स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मनमानी के चलते रेफर किए गए गंभीर मरीज को लेने के लिए पांच घंटे बाद एंबुलेंस कोविड सेंटर पहुंची। इसी लापरवाही के चलते गंभीर मरीज को न तो कोविड सेंटर में सही उपचार सुविधा मिल सका और न ही वह मेडिकल कॉलेज अस्पताल रीवा पहुंच पाया। यदि सिविल सर्जन व्यवस्थाओं को लेकर एलर्ट होते तो कोरोना के गंभीर मरीज को कोविड सेंटर में ही वेंटिलेटर सपोर्ट में दोपहर बाद रखकर जान बचानें का प्रयास होता। यदि यहां आराम न मिलता तो तत्परता पूर्वक मेडिकल कॉलेज अस्पताल रीवा भेजनें की व्यवस्था खड़े होकर स्वास्थ्य विभाग के बड़े अधिकारियों द्वारा बनाई जाती। 

*पूरी तरह लड़खड़ा चुकी है स्वास्थ्य व्यवस्था*

जिला अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं पर नजर दौडाई जाय तो यहां भी स्थिति काफी गंभीर है।  वार्ड में भर्ती मरीज की हालत बिगडनें पर परिजन संबंधित डॉक्टरों के बंगले पर जाकर जान बचानें के लिए अनुनय विनती कर गिडगिडाते रहते हैं लेकिन डॉक्टर वार्ड में आना तक जरूरी नहीं समझते। इसी लापरवाही के चलते जिला अस्पताल में भी मौंतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। मरीज की मौत होने के बाद साथ में मौजूद परिजनों की हालत क्या हो जाती है यह भुक्तभोगी ही समझ सकता है। लाश ले जाने के लिए परिजनों को शव वाहन तक उपलब्ध नहीं कराया जाता। काफी समय तक परिजनों को आवेदन लेकर भटकाया जाता है। बाद में ड्रायवर न होनें या फिर शव वाहन के बिगडनें की जानकारी देकर जिला अस्पताल के अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं।  
बीते शुक्रवार को भी इसी तरह एक गरीब  की मौत हो जाने पर उसके परिजनों ने शव वाहन न मिलने के कारण उसके पार्थिव शरीर को स्ट्रेचर पर लादकर ही ले गए। शव वाहन न मिलनें से अक्सर गरीब परिवारों को शव ठेला या खटोला में लादकर ले जाने के मामले सामनें आते हैं। उस दौरान जिला प्रशासन भी दोषियों पर कार्रवाई करनें की बात कह देता है पर बाद में कुछ भी नहीं होता। स्वास्थ्य विभाग के पूरे सिस्टम में मनमानी का आलम है। पीडि़त परिजन इसमें फंसकर अपने मरीज की न तो जान बचा पाते और न ही दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करा पाते।

*उपचार के बजाय रेफर का चल रहा खेल*

जिला अस्पताल में गंभीर मरीजों के उपचार के लिए करोड़ों के जीवन रक्षक उपकरण शासन द्वारा मुहैया कराए गए हैं। जिससे मरीज को जिला अस्पताल में ही जरूरत पडऩें पर सोनोग्राफी,डायलिसिस, वेंटिलेटर समेत अन्य उपकरणों की मदद मिल सके। सच्चाई यह है कि मरीज की हालत बिगड़ते ही उपचार करने वाले डॉक्टर उसकी जान बचानें के लिए पांच मिनट का समय भी देना उचित नहीं मानते। परिजनों के गिड़गिड़ानें पर पर्ची में कुछ दवाएं लिखकर दे दी जाती हैं। स्थिति में कोई सुधार न होनें पर सभी डॉक्टर गरीब परिजनों की समस्याओं को नजरअंदाज करते हुए मेडिकल कॉलेज रीवा अस्पताल रेफर कर अपनी जि मेदारी से मुंह मोंड लेते हैं। ऐसे में यह समझ में नहीं आता कि जब गंभीर मरीजों को रेफर ही करना है तो जिला अस्पताल में महंगे जीवनरक्षक उपकरणों की मांग क्यों की जाती है। उपकरण मिलनें के बाद भी संबंधित डॉक्टर इनका उपयोग कर मरीज की जान बचानें का कभी प्रयास नहीं करते हैं। अस्पताल में पदस्थ दो दर्जन से ज्यादा डॉक्टर केवल मरीजों को बंगले में ही देखने की डय़ूटी कर रहे हैं।

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