Prakash Shah: 75 करोड़ रुपए सालाना की सैलरी छोड़ साधु बन गए थे मुकेश अंबानी के राइट हैंड, यहां जानिए पूरी कहानी

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Prakash Shah: 75 करोड़ रुपए सालाना की सैलरी छोड़ साधु बन गए थे मुकेश अंबानी के राइट हैंड, यहां जानिए पूरी कहानी



Prakash Shah: 75 करोड़ रुपए सालाना की सैलरी छोड़ साधु बन गए थे मुकेश अंबानी के राइट हैंड, यहां जानिए पूरी कहानी 


Prakash Shah: कभी रिलायंस इंडस्ट्रीज में वाइस प्रेसिडेंट रहे प्रकाश शाह (Prakash Shah) को कारोबारी जगत में मुकेश अंबानी का दायां हाथ माना जाता था. लेकिन उन्होंने अपनी शानदार कॉर्पोरेट लाइफ को अलविदा कहकर एक साधारण और आध्यात्मिक जीवन अपनाने का फैसला किया.
63 साल की उम्र में प्रकाश शाह ने रिटायरमेंट लेने के बाद 'दीक्षा' ले ली. उनकी पत्नी नाइना शाह ने भी उनके साथ दीक्षा ली. दोनों ने यह कदम महावीर जयंती के शुभ अवसर पर उठाया.

प्रकाश शाह की दीक्षा लेने की योजना पहले ही बन चुकी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते इसे कुछ समय के लिए टालना पड़ा. जैन धर्म में दीक्षा एक पवित्र प्रक्रिया होती है, जिसमें व्यक्ति सांसारिक जीवन को त्याग कर संयम और तपस्या का मार्ग अपनाता है. दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति पाप से दूर रहता है और केवल पुण्य के मार्ग पर चलता है, मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से.

कौन हैं प्रकाश साह ?

प्रकाश शाह ने केमिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है और इसके बाद IIT बॉम्बे से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की. उनकी पत्नी नाइना शाह कॉमर्स ग्रेजुएट हैं. इस दंपत्ति के दो बेटे हैं, जिनमें से एक बेटा कुछ साल पहले ही दीक्षा ले चुका है. दूसरा बेटा शादीशुदा है और एक बच्चे का पिता है.

रिलायंस के बड़े प्रोजेक्ट्स संभाले

अपने कॉरपोरेट करियर के दौरान प्रकाश शाह ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के कई बड़े प्रोजेक्ट्स को सफलतापूर्वक संभाला. इनमें जामनगर पेटकोक गैसीफिकेशन प्रोजेक्ट और पेटकोक मार्केटिंग जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट शामिल हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रिटायरमेंट के वक्त प्रकाश शाह की सालाना सैलरी करीब 75 करोड़ रुपये थी.

अब 64 वर्ष की उम्र में, प्रकाश शाह एक जैन साधु के रूप में जीवन बिता रहे हैं. दीक्षा लेने के बाद उन्होंने पूरी तरह से सादगी भरा जीवन अपना लिया है. वे नंगे पांव चलते हैं, साधारण सफेद वस्त्र पहनते हैं और अपने जीवनयापन के लिए भिक्षा पर निर्भर रहते हैं. उनकी दीक्षा समारोह मुंबई के बोरीवली में पूरी तरह संपन्न हुई.

बड़े बेटे ने भी ली थी दीक्षा

दिलचस्प बात यह है कि सात साल पहले उनके बड़े बेटे ने भी दीक्षा ली थी, जिसके बाद उसे 'भुवन जीत महाराज' नाम दिया गया. प्रकाश शाह का कहना है, “बचपन से ही मेरे मन में दीक्षा लेने की इच्छा थी. जो आध्यात्मिक आनंद और मानसिक शांति इससे मिलती है, वह दुनिया की किसी भी चीज से तुलना नहीं की जा सकती.” जहाँ एक ओर कई लोग रिटायरमेंट के बाद ऐशो-आराम और विदेश यात्राओं का सपना देखते हैं, वहीं प्रकाश शाह और उनकी पत्नी ने करोड़ों की संपत्ति छोड़कर संयम, साधना और साधु जीवन को चुना है. यह कदम इस बात का उदाहरण है कि सच्ची संतुष्टि केवल भौतिक सुखों से नहीं, बल्कि आत्मिक शांति से मिलती है.

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